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uLektz पेशेवर और सामाजिक संघों के लिए मंच प्रदान करता है
uLektz पेशेवर और सामाजिक संघों के लिए ऑनलाइन निजी सामुदायिक मंच प्रदान करता है। यह आपके संघ को बढ़ावा देने, आपके समुदाय को विकसित करने, आपके सदस्यों को मूल्यवर्धित सेवाएँ प्रदान करने और सदस्यता प्रबंधित करने में मदद करता है। यह आपके सदस्यों के साथ जुड़े रहने में भी मदद करता है और आपके सदस्यों को सामाजिक और व्यावसायिक नेटवर्किंग के लिए एक-दूसरे से जुड़ने और केवल सदस्यों के संसाधनों और सेवाओं तक पहुंचने की सुविधा प्रदान करता है।
विशेषताएँ
एसोसिएशन को बढ़ावा दें: अपने एसोसिएशन ब्रांड के तहत व्हाइट-लेबल वाले मोबाइल ऐप के साथ क्लाउड-आधारित नेटवर्किंग और सामुदायिक प्लेटफ़ॉर्म लागू करें।
सदस्य डिजिटल रिकॉर्ड: अपने सभी सदस्यों के डिजिटल रिकॉर्ड और ऑनलाइन प्रोफाइल और उनकी सदस्यता विवरण प्रबंधित करें।
जुड़े रहें: सहयोग बढ़ाएं और संदेशों, सूचनाओं और प्रसारणों के माध्यम से अपने संघ के सभी सदस्यों से जुड़े रहें।
सदस्यों की सहभागिता: अपने सदस्यों को जानकारी, विचार, अनुभव आदि साझा करने के लिए एक-दूसरे से जुड़ने और संलग्न होने की सुविधा प्रदान करें।
ज्ञानकोष: अपने सदस्यों को अपने संघ से संबंधित शिक्षण संसाधनों तक पहुंचने के लिए ज्ञानकोष का एक डिजिटल फ़ाइल भंडार प्रदान करें।
सीखना और विकास: अपने सदस्यों को स्किलिंग, री-स्किलिंग, अपस्किलिंग और क्रॉस-स्किलिंग के लिए ऑनलाइन प्रमाणन पाठ्यक्रम प्रदान करें।
इवेंट प्रबंधन: अपने सदस्यों के पंजीकरण और भाग लेने के लिए विभिन्न पेशेवर, सामाजिक और मनोरंजक कार्यक्रमों का आयोजन और संचालन करें।
कैरियर उन्नति: नेटवर्किंग और संदर्भों के माध्यम से अपने सदस्यों को कैरियर उन्नति के अवसरों की सुविधा प्रदान करें।
सदस्यता प्रबंधन: सदस्यता शुल्क भुगतान के लिए अपने सदस्यों को स्वचालित अनुस्मारक भेजें और शुल्क ऑनलाइन जमा करें।
बीसवीं सदी का दूसरा दशक भारत के इतिहास में राजनीतिक आंदोलन के संघर्ष का काल था। आजादी की बागडोर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हाथों में थी। 1920 के असहयोग आन्दोलन में सम्पूर्ण भारत के सभी क्षेत्रों, समाजों एवं वर्गों की सक्रिय भागीदारी थी। इस आन्दोलन में गढ़वाली समाज की भी पूर्ण भागीदारी थी। उस समय अंग्रेजी शासन था। भारत सरकार छह महीने दिल्ली से और छह महीने शिमला से काम करती थी। ऐसे माहौल में शिमला शहर में कुछ प्रवासी गढ़वालियों के सफल प्रयासों से 1923 में शिमला में राय साहब पूरनमल की धर्मशाला में गढ़वाल सर्व हितैषिणी सभा का गठन किया गया। बैठक का मुख्य उद्देश्य समय की आवश्यकता के अनुसार प्रवासी गढ़वालियों के आपसी संगठन एवं उन्नति हेतु प्रयास करना था। परन्तु सर्व हितैषिणी सभा केवल दो-तीन वर्षों तक ही सक्रिय रूप से कार्य कर सकी और फिर लम्बे समय तक, लगभग 8-9 वर्षों तक निष्क्रिय रही। इस बीच, सभा को पुनर्जीवित करने के कई असफल प्रयास किये गये। 9 अगस्त, 1936 को पुनः चुनाव होने पर सभा की गतिविधियाँ सक्रिय हो गईं, परन्तु आपसी विवाद के कारण कुछ सदस्यों ने इस चुनाव को अम्बाला न्यायालय में चुनौती दे दी। 19 मई, 1938 को न्यायालय ने 9 अगस्त को 1936 के चुनाव को वैध ठहराया। परिणामस्वरूप मतभेद के कारण बैठक दो भागों में विभाजित हो गयी। श्री आनंद सिंह नेगी, आचार्य जोधसिंह रावत और श्री गोबिंद राम चंदोला के नेतृत्व वाला हिस्सा गढ़वाल हितैषिणी सभा के नाम से जाना जाने लगा और श्री गोकुल देव डोभाल के नेतृत्व वाला दूसरा हिस्सा गढ़वाल सर्व हितैषिणी सभा के नाम से जारी रहा, लेकिन आपसी मतभेद. कारण कुछ ही महीनों में टूट गया।
Last updated on Jul 21, 2023
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Gharwal Hiteshini Sabha
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Jul 21, 2023