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पंचतन्त्र की कहानियाँ-icoon

9.8 by Sarvahitkari


Jun 11, 2021

पंचतन्त्र की कहानियाँ Screenshots

Over पंचतन्त्र की कहानियाँ

Grappige verhalen over Panchatantra Verhalen door wilde dieren en mensenfiguren te maken

पं॰ विष्णु शर्मा प्रसिद्ध संस्कृत नीतिपुस्तक पंचतन्त्र के रचयिता थे। नीतिकथाओं में पंचतन्त्र का पहला स्थान है। उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि जब इस ग्रंथ की रचना पूरी हुई, तब उनकी उम्र ८० वर्ष के करीब थी। वे दक्षिण भारत के महिलारोप्य नामक नगर में रहते थे।

संस्कृत नीति-कथाओं में पंचतंत्र का स्थान

संस्कृत नीति-कथाओं में पंचतंत्र का पहला स्थान माना जाता है। यद्यपि यह पुस्तक अपने मूल रूप में नहीं रह गयी है, फिर भी उपलब्ध अनुवादों के आधार पर इसकी रचना तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व[1 के आस- पास निर्धारित की गई है। इस ग्रंथ के रचयिता पं॰ विष्णु शर्मा है। उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि जब इस ग्रंथ की रचना पूरी हुई, तब उनकी उम्र लगभग ८० वर्ष थी। पंचतंत्र को पाँच तंत्रों (भागों) में बाँटा गया है:

मित्रभेद (मित्रों में मनमुटाव एवं अलगाव)

मित्रलाभ या मित्रसंप्राप्ति (मित्र प्राप्ति एवं उसके लाभ)

काकोलुकीयम् (कौवे एवं उल्लुओं की कथा)

लब्धप्रणाश (हाथ लगी चीज (लब्ध) का हाथ से निकल जाना (हानि))

अपरीक्षित कारक (जिसको परखा नहीं गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें ; हड़बड़ी में कदम न उठायें)

मनोविज्ञान,व्यवहारिकता तथा राजकाज के सिद्धांतों से परिचित कराती ये कहानियाँ सभी विषयों को बड़े ही रोचक तरीके से सामने रखती है तथा साथ ही साथ एक सीख देने की कोशिश करती है।

पंचतंत्र की कई कहानियों में मनुष्य-पात्रों के अलावा कई बार पशु-पक्षियों को भी कथा का पात्र बनाया गया है तथा उनसे कई शिक्षाप्रद बातें कहलवाने की कोशिश की गई है।

पंचतन्त्र की कहानियां बहुत जीवंत हैं। इनमे लोकव्यवहार को बहुत सरल तरीके से समझाया गया है। बहुत से लोग इस पुस्तक को नेतृत्व क्षमता विकसित करने का एक सशक्त माध्यम मानते हैं। इस पुस्तक की महत्ता इसी से प्रतिपादित होती है कि इसका अनुवाद विश्व की लगभग हर भाषा में हो चुका है।

नीतिकथाओं में पंचतंत्र का पहला स्थान है। पंचतंत्र ही हितोपदेश की रचना का आधार है। स्वयं नारायण पण्डित जी ने स्वीकार किया है-

पंचतन्त्रात्तथाऽन्यस्माद् ग्रंथादाकृष्य लिख्यते॥

-- श्लोक सं.९, प्रस्ताविका, हितोपदेश

विश्व-साहित्य में पंचतन्त्र का स्थान

विश्व-साहित्य में भी पंचतन्त्र का महत्वपूर्ण स्थान है। इसका कई विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इन अनुवादों में पहलवी भाषा का ‘करटकदमनक’ नाम का अनुवाद ही सबसे प्राचीन अनुवाद माना जाता है। इसकी लोकप्रियता का यह परिणाम था कि बहुत जल्द ही पंचतंत्र का ‘लेरियाई’ भाषा में अनुवाद करके प्रकाशित किया गया, यह संस्करण 570 ई. में प्रकाशित हुआ था। फारसी से अरबी भाषा में इसका अनुवाद हुआ। अरबी से सन 1080 के लगभग इसका यूनानी भाषा में अनुवाद हुआ। फिर यूनानी से इसका अनुवाद लैटिन भाषा में पसिनस नामक व्यक्ति ने किया। अरब अनुवाद का एक उल्था स्पेन की भाषा में सन 1251 के लगभग प्रकाशित हुआ। जर्मन भाषा में पहला अनुवाद 15वीं शताब्दी में हुआ और उससे ग्रंथ का अनुवाद यूरोप की सब भाषाओं में हो गया। विंटरनित्ज़ के अनुसार जर्मन साहित्य पर पंचतन्त्र का अधिक प्रभाव देखा जाता है। इसी प्रकार ग्रीक की ईसप् की कहानियों का तथा अरब की 'अरेबिअन नाइट्स' आदि कथाओं का आधार पंचतन्त्र ही है। ऐसा माना जाता है कि पंचतन्त्र का लगभग 50 विविध भाषाओं में अब तक अनुवाद हो चुका है और इसके लगभग 200 संस्करण भी हो चुके है। यही इसकी लोकप्रियता का परिचायक है।

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